दोस्तों आप सभी जानते है संगीत एक ऐसी चीज़ है जिससे कोई वंचित रह ही नही सकता अब चाहे वो उससे प्रेम करता हो या फिर लगाव हो|संगीत से हमे एक अलग ही उर्जा प्राप्त होती है और अगर हम बात करे पहले के और शास्त्रीय संगीत की तो बात ही क्या है|ऐसे ही आज इस आर्टिकल के माध्यम से एक ऐसे गायक के बारे में बताने जा रहा हु जिसे संगीत का भगवान् कहा जाता है और संगीत का स्तम्भ भी कहा जाता है|मै बात कर रहा हु फ़िल्मी जगत और भारतीय सिनेमा के प्लेबैक सिंगर मोहम्मद रफ़ी साब की|शायद कोई हो जिसने रफ़ी जी के गाने न सुना हो|रफ़ी साब की आवाज में ऐसा जादू था और वो जब गाने गाते थे तो ऐसा लगता था मानो सरस्वती जी उनकी जुबान पे आके बैठ गयी हो|आज भी जब हम उनके गीतों को सुनने लग जाते है तो एक अलग ही सुख और चैन मिलता है|
मोहम्मद रफ़ी साहब बहुत सज्जन व्यक्तित्व के और बड़े सरल स्वाभाव के व्यक्ति थे जो की बहुत धीरे बोलते थे बाते करते थे इतना धीरे आवाज में बोलते थे की अगर आप अच्छे से उनकी बातो पर ध्यान न दे तो सुन नही सकते थे और इतनी मीठी वाणी मानो अमृत का सेवन करते हो|लेकिन जब वो गाते थे तो लोग नाचने लगते थे|सोनू निगम जी बहुत बड़े फैन है रफ़ी साहब के उन्ही को अपना गुरु भी मानते है|रफ़ी साहब सरस्वती माता के बहुत बड़े पुजारी थे|आज मै आप सभी को रफ़ी साब से जुडी कुछ अहम् और अनसुनी बाते बताउगा और साथ ही जीवन परिचय से भी अवगत करुगा|तो आइये जानते है रफ़ी साब का जीवन परिचय|
मोहम्मद रफ़ी का जीवन परिचय –
पूरा नाम – मोहम्मद रफ़ी|
जन्म – 24 दिसम्बर 1924|
जन्म स्थान – मजीठा,अमृतसर (पंजाब)|
माता पिता – अल्लाराखी,हाजी अली मोहम्मद|
मोहम्मद रफ़ी साहब का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को मजीठा अमृतसर पंजाब में हुआ था|संगीत प्रेमियों के लिए यह गांव किसी तीर्थ से कम नहीं है|मोहम्मद ऱफी के चाहने वाले दुनिया भर में हैं सभी जानते है भले ही मोहम्मद ऱफी साहब हमारे बीच में नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ रहती दुनिया तक क़ायम रहेगी और प्रेम भी उतनाही बना रहेगा|बहुमुखी प्रतिभा के धनी रफ़ी साहब बहुत ही सरल स्वाभाव के थे|मोहम्मद ऱफी के पिता का नाम हाजी अली मोहम्मद और माता का नाम अल्लारखी था|उनके पिता खानसामा थे|ऱफी के ब़डे भाई मोहम्मद दीन की हजामत की दुकान थी, जहां उनके बचपन का का़फी व़क्त गुज़रा|इस तरह रफ़ी साहब कापरिवार भी श्रेष्ठ था|
एक बार की बात आपको बताये जब रफ़ी साहब 7 साल के थे तभी उनके भाई ने रफ़ी को एक फ़कीर के पीछे पीछे गाते हुए छाल रहे थे जो की वो फ़कीर एकतारा बजाते हुए गाते हुए छाल रहा था|ऐसा उसने अपने पिता से जाकर बताया तो उनके पिता जी ने उन्हें खूब डाटा|लेकिन उस फ़कीर ने रफ़ी को आशीर्वाद दिया था की तू एक दिन बहुत बड़ा गायक बनेगा और जीवन में नाम कमाएगा|आपको बताये तभी से सभी को उनके अन्दर संगीत का सागर देखा और उनके टैलेंट को पहचान लिए|1935 में उनके पिता रोजगार के सिलसिले में लाहौर आ गए|यहां उनके भाई ने उन्हें गायक उस्ताद उस्मान खान अब्दुल वहीद खान की शार्गिदी में सौंप दिया|बाद में ऱफी साहब ने पंडित जीवन लाल और उस्ताद ब़डे ग़ुलाम अली खां जैसे शास्त्रीय संगीत के दिग्गजों से भी संगीत सीखा|इस तरह रफ़ी के मन मुताबिक काम सुरु हो गया था|
रफ़ी साहब का फ़िल्मी सफ़र –
दोस्तों इस तरह रफ़ी साहब का रास्ता साफ़ हो गया और आपको बताना चाहूगा मोहम्मद ऱफी साहब उस व़क्त के मशहूर गायक और अभिनेता कुंदन लाल सहगल के दीवाने थे|साथ ही उनके जैसा ही बनना चाहते थे|वह छोटे-मोटे जलसों में सहगल के गीत गाते थे|क़रीब 15 साल की उम्र में उनकी मुलाक़ात सहगल से हुई|एक दिनऐसा हुआ कि लाहौर के एक समारोह में सहगल गाने वाले थे|ऱफी भी अपने भाई के साथ वहां पहुंच गए|संयोग से माइक खराब हो गया और लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया|व्यवस्थापक परेशान थे कि लोगों को कैसे खामोश कराया जाए|उसी व़क्त ऱफी के ब़डे भाई व्यवस्थापक के पास गए और उनसे अनुरोध किया कि माइक ठीक होने तक ऱफी को गाने का मौक़ा दिया जाए|आपको बताये व्यवस्थापक मान गए|ऱफी ने गाना शुरू किया, लोग शांत हो गए|इतने में सहगल भी वहां पहुंच गए|उन्होंने ऱफी को आशीर्वाद देते हुए कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि एक दिन तुम्हारी आवाज़ दूर-दूर तक फैलेगी|यही रफ़ी साहब का टर्निंग पॉइंट था|
मोहम्मद ऱफी को संगीतकार फिरोज निज़ामी के मार्गदर्शन में लाहौर रेडियो में गाने का मौक़ा मिला|उन्हें कामयाबी मिली और वह लाहौर फिल्म उद्योग में अपनी जगह बनाने की कोशिश करने लगे|उस दौरान उनकी रिश्ते में ब़डी बहन लगने वाली बशीरन से उनकी शादी हो गई|उस व़क्त के मशहूर संगीतकार श्याम सुंदर और फिल्म निर्माता अभिनेता नासिर खान से ऱफी की मुलाक़ात हुई|उन्होंने उनके गाने सुने और उन्हें बंबई आने का न्यौता दिया ऱफी के पिता संगीत को इस्लाम विरोधी मानते थे, इसलिए ब़डी मुश्किल से वह संगीत को पेशा बनाने पर राज़ी हुए|ऱफी अपने भाई के साथ बंबई पहुंचे|आपको बताना चाहूगा ऱफी ने गुलबलोच के ‘सोनियेनी हीरिएनी तेरी याद ने बहुत सताया ‘ गीत के ज़रिये पार्श्वगायन के क्षेत्र में क़दम रखा|यही उनका पहला गीत भी था|
दोस्तों मोहम्मद रफ़ी साहब ने बहुत से गाने गए है लेकिन आपको बताये रफ़ी ने लगभग 28000 गीत गए और अभी संदेह ही है|इस तरह रफ़ी को बहुत से अवार्ड भी मिले आइये जानते है|
गाने –
चौदहवीं का चांद हो (फ़िल्म – चौदहवीं का चांद), हुस्नवाले तेरा जवाब नहीं (फ़िल्म – घराना), तेरी प्यारी प्यारी सूरत को (फ़िल्म – ससुराल), मेरे महबूब तुझे मेरी मुहब्बत की क़सम (फ़िल्म – मेरे महबूब), चाहूंगा में तुझे (फ़िल्म – दोस्ती), बहारों फूल बरसाओ (फ़िल्म – सूरज), दिल के झरोखे में (फ़िल्म – ब्रह्मचारी), क्या हुआ तेरा वादा (फ़िल्म – हम किसी से कम नहीं), खिलौना जानकर तुम तो, मेरा दिल तोड़ जाते हो (फ़िल्म -खिलौना)|
पुरस्कार –
- पद्म श्री (1965)|
- फिल्मफेयर अवार्ड 6|
मृत्यु –
अचानक आये ह्रदय विकार की वजह से 31 जुलाई 1980 को रात को 10:25 बजे उनकी मृत्यु हो गयी|उन्होंने अपना अंतिम गाना आस पास फिल्म के लिये गाया था जिसे उन्होंने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ रिकॉर्ड किया था|एक गुप्त बात आपको बताये रफ़ी जी कीमृत्यु के कुछ ही दिन पहले उन्होंने लता मंगेश्करजी से कहा था की मै आपके मुखसे एक अंतिम गीत सुनना चाहता हु तो लता जी ने उन्हें ये गीत सुनाया था – रहे न रहे हम महका करेंगे बनके कलि बनके समां|
दोस्तों इस तरह आप सभी ने जान अरफी जी से जुडी कुछ अहम् जानकारी और उनका जीवन परिचय|मै समझ सकता हु आप सभी को मेरा ये पोस्ट अच्छा लगा होगा और अगर आपको रफ़ी जी से जुडी कोई जानकारी लेनी हो तो message के द्वारा पता कर सकते है|
इसे भी पढ़े –